Thursday, December 16, 2010

असांज के लिए - पुनीत शर्मा




प्रोमिथियस !!
सोचा क्या था तुमने ?
क्या कर लोगे तुम ?


मूर्ख !!
हश्र बदलने चले थे
ज्ञानहीन नश्वरो का
वो भी लेकर शत्रुता
देवताओं के सम्राट
ज़ीयस से …
जिसे था नष्ट करना
अस्तित्व इन मनुष्यो का

प्रोमिथियस !!
आग, बहुत ही क्रांतिकारी वस्तु है
माना बहुत ज़रूरी भी थी
नश्वरो के लिए
परंतु , उतनी ही विनाशकारी
और गैरजरूरी भी
क्युकीं , उन्हे नही पता
उस ज्ञान का उपयोग…
और तुम
बिना कारण ही
शापित हो चले
उस शाप से
जिसमे,
तुम्हारा कलेजा
उगेगा रोज
और रोज
उसे नोच के खाएगा
एक “गंजा गरुड़

प्रोमिथियस !!
सोचा क्या था तुमने ?
क्या कर लोगे तुम ?

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